नाम डुबोना मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग नए तरीके से

नाम डुबोना मुहावरे का अर्थ और वाक्य में प्रयोग, naam dubna muhavare ka arth aur vakya mein prayog

नाम डुबोना एक प्रसिद्ध मुहावरा है । मगर इसका मतल यह नही है की आप नाम को डूबोने वाले काम करो । क्योकी कुछ लोगो को ऐसे ही लगता है । मगर साथी आपको ‌‌‌बता दे की नाम डुबोना मुहावरे का अर्थ कुछ और ही होता है जो की हम इस लेख में अच्छी तरह से समझ लेगे । वैसे बहुत से लोगो को हमने मुहावरे समझा दिए है तो आपको भी जरूर पसंद आएगे –

नाम डुबोना मुहावरे का अर्थ क्या होता है बताइए

‌‌‌इस मुहावरे का अर्थ आपको निचे तालिका में देखने को मिलेगा

‌‌‌मुहावरा (idiom in Hindi)‌‌‌अर्थ ‌‌‌या मतलब (Meaning in Hindi)
नाम डुबोनामर्यादा को नष्ट करना ।

‌‌‌ नाम डुबोना मुहावरे को समझने का प्रयास करते है

आज व्यक्ति के जीवन का सबसे अहम हिस्सा मान सम्मान का बना रहता होता है । अगर आपके पास इज्जत है तो आपके लिए यह काफी अच्छा होता है आपको हर कोई सम्मान देता है । मगर जब इज्जत होती है या आपको सम्मान मिलता है तो आपका जो नाम होता है वह हमेशा उच्चा बना रहता है । मगर वही पर इसका विपरीत यह होता ‌‌‌है की जब आपका मान सम्मान नष्ट हो जाता है आपकी इज्जत नष्ट हो जाती है तो आपका नाम अपने आप डूब जाता है । मगर क्योकी यहां पर नाम डूबोने की बात हो रही है तो इसका मलब हुआ की मर्यादा को नष्ट करना ।

नाम डुबोना मुहावरे का अर्थ और वाक्य प्रयोग नए तरीके से

नाम डुबोना मुहावरे का वाक्य में प्रयोग

वाक्य में प्रयोग महेश के रिश्तव लेते पकड़े जाने के कारण से पूरे पुलिस विभाग का नाम डूब गया ।

वाक्य में प्रयोग अगर तुम गलत करते हो तो तुम्हारे दादा पड़दादाओ का भी नाम डूब जाएगा ।

वाक्य में प्रयोग एक पुलिस वाला ही चोर का साथ दे रहा है , यह तो पुलिस विभाग का नाम डूबोने में लगा है ।

वाक्य में प्रयोग अध्यापक ने जानबुझ ‌‌‌कर अपने ही विद्यार्थियो को फैल कर दिया और अंत में अध्यापक को पता चला की ऐसा कर कर उन्होने अपने ही स्कूल का नाम डूबो दिया है ।

‌‌‌आखिर क्यो एक अध्यापक ने अपने ही स्कूल का नाम डूबो दिया एक प्रसिद्ध कहानी

पुराने ज़माने में, एक दूर शहर में एक स्कूल था जिसके बारे में बात की जाती थी क्योंकि स्कूल अच्छा था। इसमें शीर्ष पायदान के संकाय और महान पाठ्यक्रम थे। छात्र इस स्कूल में शामिल होने पर गर्व महसूस कर रहे थे और जिसने भी किया उसके पास कहने के लिए अद्भुत चीजों के अलावा कुछ नहीं था। बेशक समय बदल गया है, और स्कूल अब मौजूद नहीं है। लेकिन भले ही अब इसे चले गए कई साल हो गए हैं, इसकी विरासत अभी भी जीवित है और इसके बारे में बात करने वाले छात्रों के लिए धन्यवाद।

‌‌‌मगर आपको बता दे की इस स्कूल में एक बार ऐसी घटना घटी थी जिसके कारण से स्कूल बर्बाद होना शुरू हो गया था ।

स्कूल चलाने वाले का नाम सूरजमल बहुत ही नेक इंसान था। उनके पास छात्रों के लिए हमेशा समय होता था और उनकी देखभाल करते थे जैसे कि वे उनके अपने बच्चे हों। सूरजमल ने छात्रों को नैतिकता, मूल्यों और ईश्वर प्रदत्त अधिकारों के बारे में पढ़ाया। उन्होंने कभी भी लड़ाई से पीछे नहीं हटे और हमेशा दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया।

सुरजमल, एक ऑटोडिडैक्ट, जिन्होंने 70 के दशक में संस्कृत सीखना शुरू किया था, भारत के सबसे पुराने स्कूलों में से एक को प्रसिद्ध बनाने में उनकी कड़ी मेहनत और प्रयासों के लिए कई लोगों द्वारा सम्मानित किया गया है। स्कूल, जिसे 1795 में स्थापित किया गया था, अब दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध है। सुरजमल ने वहां तीन दशक से अधिक समय तक पढ़ाया है और कैंसर से गंभीर रूप से बीमार होने के बावजूद, वह स्कूल में कक्षाएं पढ़ाना जारी रखता है।

सूरजमल ‌‌‌से पढ़ने वाले लगभग सभी छात्रों को सीखना अच्छा लगता था और यही कारण था कि उनमें से लगभग सभी ने अपनी डिग्री पूरी करने के बाद अच्छी नौकरी हासिल कर ली। यह संस्थान अपने उत्कृष्ट शिक्षण के लिए जाना जाता था और इसके छात्र अपनी परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करते थे, जिससे उन्हें करियर के अच्छे अवसर प्राप्त करने में मदद मिलती थी।

सूरजमल भारत के एक गाँव के स्कूल में प्राथमिक शिक्षक हैं। वे कई वर्षों से पढ़ा रहे हैं और उनके शिष्यों ने हमेशा अपने जीवन में अच्छी प्रगति की है। सूरजमल की अच्छी शिक्षाओं ने उन्हें मजबूत, स्वतंत्र व्यक्ति बनने में मदद की है।

दिल्ली एक ऐसा शहर है जो कभी नहीं सोता। यह हमेशा लोगों के साथ रहने के लिए व्यस्त रहता है, और कभी भी नीरस क्षण नहीं होता है। इसलिए जब दिल्ली के कुछ बड़े लोगों ने सूरजमल के साथ बदसलूकी की ।

तब सूरजमल ने नाराज होकर सभी बच्चो को परिक्षा में फैल करवा दिया । मगर इसके कारण से सूरजमल के ही स्कूल का नाम गिर गया । सभी स्कूल को बुरा बताने लगे थे । मगर यह सभी को पता था की यह सूरजमल ने जान बुझ कर किया है ।

अपने ही स्कूल का नाम डूबो दिया

स्कूल का नाम पड़ गया क्योंकि स्कूल के सारे बच्चे बिखर गए थे और कोई बच्चों को स्कूल भेजने को तैयार नहीं था। जिस जमीन पर कभी स्कूल हुआ करता था, ‌‌‌अब वहां पर कोई नही पढने के लिए आ रहा था । ‌‌‌‌‌‌तब सुरजमल को अहसास हुआ की उसे बच्चो को फैल नही करना चाहिए था और यही कारण है की उसे स्कूल में कोई भी पढने के लिए नही आ रहा है । सूरजमल को उमिद नही थी की उसकी गलती के कारण से स्कूल का नाम डूब जाएगा और उसका स्कूल बंद हो जाएगा । मगर ऐसा ही हुआ था तो सूरजमल कर भी क्या सकता था ।

अब दिल्ली में ‌‌‌रहने वाले लोग ही सूरजमल को कहने लगे की तुम्हारी गलती के कारण से ही तुम्हारे स्कूल का नाम डूब गया है । मगर यह सुरजमल को पता था मगर अब क्या हो सकता था । आज वह स्कूल पूरी तरह से बर्बाद है और कोई भी उस स्कूल का नाम तक नही जानता है ।

इस कारण से कहते है की अपनी गलती के कारण से अपना ही नुकसान हो ‌‌‌जाता है । तो कभी गलती नही करनी चाहिए ।

‌‌‌इस कहानी से क्या समझ में आया कमेंट में बताना

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